
।। श्रीमान् नित्यानन्द-चन्द्राय नमः ।।
नित्यानन्द १२ नाम
नित्यानन्दो अवधूतेन्दुर
वसुधा-प्राण-वल्लभः ।
जाह्नवी-जीवित-पतिः
कृष्ण-प्रेम-प्रदः प्रभु ॥१॥
पद्मावती-सुतः श्रीमान
शची-नन्दन-पूर्वजः ।
भावोन्मत्तो जगत-त्राता
रक्त-गौर-कलेवरः ॥२॥
नित्यानन्द १०८ नाम
(१) पद्मावती-सुतः
(२) बलदेव
(३) नीलाम्बर-धर |
(४) एकचक्र-नवद्विप-शशि
(५) राढ- सुधाकर ||
(६) नित्यानन्द
(७) पितृ-भक्त
(८) अद्भुत-बालक |
(९) कृष्ण-प्रेमी
(१०) सर्व-अवतार-लीला-दर्शक ||
(११) हाडाइ-सुत
(१२) एकचक्र-सर्व-क्लेश-हारी |
(१३) जगाइ-माधाइ-त्राता
(१४) कीर्तन-बिहारी ||
(१५) गौर-दर्शक-नट
(१६) लौह-दण्ड-धारी |
(१७) सखा -संगे-मौडेश्वरी-तीर-वन-चारी ||
(१८) गोप-गोपी-व्रज-प्राण
(१९) नित्यानन्द-सुन्दर |
(२०) गौरांग-प्रेमोन्मत्त
(२१) अवधूत
(२२) नटबर ||
(२३) स्व-नामोन्मत्त
(२४) गौर-तत्व-प्रकाशक |
(२४) नाम-संकीर्तन-युग-धर्म-प्रवर्तक ||
(२५) नुपुर-चरण-धर
(२६) आदि-गुरु-बलराम |
(२७) अव्दैत-गदाधर-बान्धव
(२८) गौर-गुण-धाम ||
(२९) कोटि-चन्द्र-मुख-पद्म-उज्ज्वल-सुखी |
(३०) चन्दन-लेपित-अंगी-सुथाम-तिलकी ||
(३१) नव-मेघ-सम-कण्ठ-वाणी-सुगम्भीर |
(३२) दाडिम्ब-बीज-सम-दन्त-सदा-अस्थिर ||
(३३) आजानु-लम्बित-भुज
(३४) कान्चन-शरीर |
(३५) अट्ट-अट्ट-हास्य
(३६) प्रेम-विकारी-अस्थिर ||
(३७) अदोष-दर्शी
(३८) सदा-घूर्णित-लोचन |
(३९)अक्रोधी
(४०) लक्ष्मण
(४१) कलियुग-पावन ||
(४२) मूल-संकर्षण
(४३) अधम-डाकू-जन-त्राता ||
(४४) भक्त-निंदा-नाशक
(४५) माधवेंन्द्र-भर्ता ||
(४६) परमात्मा
(४७) अनन्त-शेष
(४८) जीव-दुख-हारी |
(४९) उत्तम-अधम-दृष्टी-शून्य
(५०) पापी-तारी ||
(५१) सर्व-मन्त्र-मूर्तिमंत
(५२) करूणा-अवतारी |
(५३) गौर-दण्ड-भंगी
(५४) सर्व-तीर्थ-उध्दारी ||
(५५) जान्हवा-पति
(५६) गुणमणि
(५७) चण्डाल-त्राता |
(५८) बालक-धाता
(५९) प्रेमी
(६०) शुद्ध-नाम-दाता ||
(६१) श्री-जगन्नाथ-भ्राता
(६२) भक्ति-अलन्कारी
(६३) मल्ल-वीर
(६४) मत्त-सिंह
(६५) पुष्प-माला-धारी ||
(६६) वीरचन्द्र-पिता
(६७) बाँका-राय-प्रिय-भ्राता |
(६८) परमहन्स-शिरोमणि
(६९) गौड-देश-त्राता ||
(७०) मालिनी-प्रिय-पुत्र
(७१) श्री-शचि-जीवन |
(७२) वृन्दावन-दास-गुरु
(७३) जीव-प्राणधन ||
(७४) व्दादश-गोपाल-नाथ
(७५) धामवासी-सुख-कारी |
(७६) सन्धिनी-स्वरूप
(७७) सर्व-अमंगल-हारी ||
(७८) अभिराम-बान्धव
(७९) श्रीवास-गृह-धन |
(८०) गौरीदास-प्राण
(८१) महेश-हरिदास-जीवन ||
(८२) सुन्दरानन्द-कमलाकर-दत्त-उधारण |
(८३) परमेश्वरी-धनन्जय-पुरूषोत्तम-प्राण ||
(८४) काला-कृष्णदास-खोलावेचा-प्राणधन |
(८५) गज-गति-चालक-मोहित-सर्व-जन ||
(८६) अभिमान-शुन्य
(८७) जीव-परिक्रमा-कारी |
(८८) मीनकेतन-प्राण
(८९) स्वभक्त-गौरव-कारी ||
(९०) दास-गोस्वामी-कुण्ड-दाता
(९१) वसुधा-जीवन |
(९२) दही-पोहा-स्वादानन्दी
(९३) आनन्द-वर्धन ||
(९४) षड्भुज-दर्शक
(९५) गौरनाम-धाम-दाता ||
(९६) रूप-रघुनाथ-आश्रय-कृष्णदास-प्रदाता |
(९७) अनाथ-जन-नाथ
(९८) अगति-जन-गति |
(९९) राधा-मन्त्र-दाता
(१००) कोटि-भ्रमाण्ड-पति ||
(१०१) गदाधर-दास-गोपीभाव-प्रदाता |
(१०२) भागवत-चरितामृत-प्रकाशक-विधाता ||
(१०३) गौर-कृष्ण-दण्डित-जीव-क्षमा-कारी |
(१०४) राधा-भगिनी-अनंग-सेवा-दान-कारी ||
(१०५) रागमार्ग-अविष्कर्ता
(१०६) सिद्ध-देह-दाता ||
(१०७) अपराध-अर्नथ-नाशक
(१०८) मंजरी-भाव-दाता ||
नित्यानन्द आरती
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ।
जाहनवा-वसुधा के परमानन्द की ॥
श्री बलराम, कृष्ण के भैया
बलिहारी पद्मावती मैया
हाड़ाइ-सुत आनन्द-कन्द की ।
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ॥१॥
मणिमय मुकुट शीश मन मोहे
एक कान कुण्डल अति सोहे
इन्दु विनिन्दित छबि मुखचन्द की ।
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ॥२॥
गल मणिमाल-जालकी हलकन
नील वसन अद्भुत शोभा तन
मनहर छबि मुसकान मन्द की ।
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ॥३॥
घूर्णित नयन स्वेत रतनारे
भुजा उठाये प्रेम मतवारे
काटत कठिन पाश भव फन्द की ।
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ॥४॥
“मुझे ले लो” टेरत प्रति द्वारे
कीर्तन कराय पापी बहु तारे
एकहिं गति दास मतिमन्द की ।
आरती प्रभु श्री नित्यानन्द की ॥५॥
नित्यानन्द प्रार्थना
वसुधा जाहनवा कांतम
नित्यानन्द गौरकृष्ण प्रियम ।
हरिनाम लेखन प्रदम
अनंग मंजरी रूपम
राधानुजा नमाम्यहम ॥
Jaahnavaa Vasudhaa
Kaantam (Lover)
Nityananda Gaura
Krishna Priyam (Dear) ।
Harinam Lekhan Pradam
(Giver of Harinam
and Lekhan)
Ananga Manjari
Rupam (Form of)
Raadhaanujaa
(Sister of Radha)
Namaamyaham
(Obeisances) ॥
नित्यानन्दम प्रियाम प्रेम
भक्तिरत्न प्रदायिनिम ।
श्री जाहनवा इश्वरिम वन्दे
ताप त्रय निवारिणिम ।।२।।
नित्यानन्द नमस्तुभ्यम
प्रेमानन्द प्रदायिने ।
कलौ कल्मष नाशाय
जाहनवा पतये नमः ।।३।।
नित्यानन्द अहम वन्दे
करने लम्बित मौक्तितम ।
चेतन्याग्रज रूपेण
पवित्री कृति भूतलम ।।४।।
नित्यानन्द अहम नौमी
सर्वानन्द करम परम ।
हरिनाम प्रदम देवम
अवधूत शिरोमणिम ।।५।।
दया करो नित्यानन्द
दया करो मुझपे ।
अगतियोंके गति तुम हो
साधू लोक बोले ॥६॥
जय प्रेमा भक्ति दाता
तेरी है ध्वजा ।
उत्तम अधम भेद
कभी ना तूने किया ॥७॥
प्रेम दान देकर जग में
सबको किया सुखी ।
तेरे जैसा दयाल ठाकुर
फिर भी मैं क्यों दुःखी ॥८॥
कानू राम दास बोले
मैं और क्या कहूँ ।
यही बड़ा भरोसा मेरे
कुलके ठाकुर तुहूँ ॥९॥
नित्यानन्द ही हैं
कलियुग के बलराम ।
चौदासो तिहत्तर में
प्रगटा एकचक्र धाम ॥१०॥
जाह्नवा वसुधा के
प्राण पति ।
उनके बिना कलिमें
नहीं कोई गति ॥११॥
लिखो गाओ उनका
नाम निरन्तर ।
पाओ गौर-कृष्ण प्रेम
भीतर बाहर ॥१२॥
अभागी मुख से न
निकले उनका नाम ।
सब पाप हरे उनका
चिन्तामणि नाम ॥१३॥
नित्यानन्द नामलेखन
परम उपाय ।
सर्व-चमत्कारी अक्षर
हरिनाम दाय ॥१४॥
नित्यानन्द चालीसा
जय गुरु श्री नित्यानन्द निमाइ ।
वन्दौं चरण सरोज सुहाई ॥१॥
जय संकर्षण जय बलरामा ।
जय नित्यानन्द जय सुखधामा ॥२॥
पद्मा हाड़ाइ नयनन तारे ।
एकचक्रा धाम पधारे ॥३॥
जयति जाह्नवा वसुधा नायक ।
प्रियतम प्राणपती सुखदायक ॥४॥
वीरचन्द्र प्रभु जनक सुखारे ।
करुणारूप गंगा विस्तारे ॥५॥
श्री संकर्षण त्रिभुवन भर्ता ।
उत्पति पालन परलय कर्ता ॥६॥
कारण गर्भ पयोनिधि स्वामी ।
घट घट के प्रभु अन्तरयामी ॥७॥
धरणीधर प्रभु शेष अनन्ता ।
श्रीगुरु, भक्ति, भक्त, भगवन्ता ॥८॥
रोषरहित परमानन्द रुपा ।
सदा सत्वधर सत्य स्वरूपा ॥९॥
अरुण तरुण तनु सुवर्ण आभा ।
गति गयन्द दृग जीवन लाभा ॥१०॥
नील वसन भूषित हलधारी ।
कुण्डल एक कान सुखकारी ॥११॥
मुक्तामाल-जाल उर धारी ।
नूपुर भव-भञ्जन रवकारी ॥१२॥
कलि-पावन अवतारी हमारे ।
अद्भुत चरित भक्त मुनि गावे ॥१३॥
जिसने कृपा तुम्हारी पायी ।
उसकी तो तकदीर बन आयी ॥१४॥
राधाप्रेम प्रद कृष्णप्रेम धनि ।
वैरागी अवधूत शिरोमनि ॥१५॥
छत्र वसन आसन धरि रुपा ।
निशदिन सेवत कृष्ण स्वरुपा ॥१६॥
उज्ज्वल प्रेम रसिक रसदाता ।
रसावेश रस राशि विधाता ॥१७॥
रसमय रसभुक् रस के धामा ।
रसिक-वन्द्य रसराज ललामा ॥१८॥
तुम अनाथ के नाथ और भाई ।
दुर्जन के भी सदा सहाइ ॥१९॥
नाम तुम्हारा लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नहीं कोई ॥२०॥
कृपासिन्धु पुनि कृपा अधीना ।
कृपापात्र कीन्हें खल दीना ॥२१॥
गौरनाम लहैं भुजा उठाई ।
पुलक कम्प दृग अश्रु बहाई ॥२२॥
दीर्घ श्वास निश्वास हुंकारा ।
सात्विक भाव प्रकाश अपारा ॥२३॥
गौर नाम महिमा दरसाई ।
हरिनाम सुषमा सरसाई ॥२४॥
गौरहरि नाम रस के बटवारे ।
भ्रमत नयन निरवधि रतनारे ॥२५॥
स्वनाम धन जग भिक्षाकारी ।
नाम चिन्तामणि के भण्डारी ॥२६॥
नित्यानन्द तुम हो भक्त रखवाले ।
भक्त जनो के काम बनाते ॥२७॥
भक्तों पे संकट जब आते ।
उनको तुम हो तुरन्त बचाते ॥२८॥
जगा मधा सर किये प्रहारा ।
टप-टप बहे खून की धारा ॥२९॥
करुणा कर स्वनाम सुनाये ।
निज घातक निज गले लगाये ॥३०॥
अद्य नाशे जग पावन कीने ।
सुर दुर्लभ प्रेमामृत दीने ॥३१॥
ऐसो कौन उदार जग माहीं ।
प्रेमदान दै श्वपचन काहीं ॥३२॥
कलियुग कलुषित जीव बिचारे ।
गिन-गिन टेर-टेर सब तारे ॥३३॥
पतित बन्धु प्रभु पतित उद्धारी ।
पावन-पतित पाप संहारी ॥३४॥
विधि निषेध तुच्छहिं करि डारे ।
नाम प्रेम प्रीती विस्तारे ॥३५॥
प्रेम प्रदाता प्रेम भिखारी ।
प्रेम जीवन धन प्रेम प्रचारी ॥३६॥
नित्यानन्द तुम सत्य सनातन ।
तुम ही हमारे जीवन धन ॥३७॥
नित्यानन्द नमामि नमामि ।
मो सम कौन अधम पथगामी ॥३८॥
नित्यानन्द चालीसा जो नित गावे ।
सर्व मनोरथ सिद्ध हो जावे ॥३९॥
धन सुख शान्ति नित घर आवे ।
राधा कृष्ण के प्रेम को पावे ॥४०॥
नित्यानन्द १०८ नाम (संस्कृत)
श्रील सार्वभौम भट्टाचार्य
प्रणम्य श्री जगन्नाथम्
नित्यानन्द महाप्रभुम् ।
नाम्नाम अष्टोतर शतम्
प्रवक्ष्यामि मुदाकरम् ।।
१. नीलाम्बरधर
२. श्रीमाल्लांगुलीप्रियः
३. संकर्षण
४. चन्द्रवर्ण
५. यदुनाम कुल मंगलः
६. गोपिकारमणो
७. रामो
८. वृन्दावन कलानिधिः
९. कादम्बरी सुधामत्तो
१०. गोपगोपी गणावृतः
११. गोपी मंडल मध्यस्थो
१२. रास ताण्डव पडितः
१३. रमणी रमणः
१४. कामी
१५. मदधूर्णित लोचनः
१६. रासोत्सव परिश्रान्तो
घर्म निरावृत्ताननः
१७. कलिन्दी भेदनोत्साही
१८. नीर क्रीडा कुतूहलः
१९. गौराश्रयः
२०. समः
२१. शांतो
२२. माया मानुष रुप धृक
२३-२४. नित्यानन्दावधुश्र्च
२५. यज्ञसूत्र धरः
२६. सुधिः
२७. पतित प्राणदः
२८. पृथ्वी पावनः
२९. भक्त वत्सल
३०. प्रेमानन्द मदोन्मत्त
३१. ब्रह्मादि नाम गोचरः
३२. वनमाला धरः
३३. हारी
३४. रोचनादि विभूषितः
३५. नागेन्द्र शुंड दोर द्णड
स्वर्ण कंकण मण्डितः
३६. गौर भक्ति रसोल्लासी
३७. गजेन्द्र गति लावण्य
सम्मोहित जगज्जनः
३८. संवित शुभ लीलाधृक
३९. रोमाञ्चित कलेवरः
४०. हो! हो ! ध्वनि सुधाशिश च
मुखचन्द्र विराजितः
४१. सिन्धुरारुण सुस्निग्ध
सुबिंबाधर पल्लवः
४२. स्वभक्तगण मध्यस्थः
४३. रेवती प्राणनायकः
४४. लौह दण्डधरः
४५. श्रृंगी
४६. वेणु पाणि
४७. प्रतापवान
४८. प्रचण्ड कृत हुंकार
४९.मत्तः
५०. पाषण्ड मर्दनः
५१. सर्व भक्तिमय
५२. देव
५३. आश्रमाचार वर्जितः
५४. गुणातीतः
५५. गुणमयः
५६. गुणवान
५७. नर्तन प्रियः
५८. त्रिगुणात्मा
५९. गुणग्राही
६०. सगुणो
६१. गुणिनाम वरः
६२. योगी
६३. योग विधाताच
६४. भक्तियोग प्रदर्शकः
६५. सर्व शक्ति प्रकाशांगी
६६. महानन्दमयः
६७. नटः
६८. धीरः
६९. सर्वागममयः
७०. ज्ञानदो
७१. मुक्तिदः
७२. प्रभुः
७३. गौड देश प्ररित्राता
७४. प्रेमानन्द प्रकाशकः
७५. प्रेमानन्द रसानन्दि
७६. राधिका मन्त्रदः
७७. विभुः
७८. सर्वमंत्र स्वरुप
७९. कृष्ण पर्यंक सून्दरः
८०. रसज्ञ
८१. रसदाता
८२. रसभोक्ता
८३. रसाश्रयः
८४. ब्रह्मेशादि महेंद्राद्य
वन्दित श्री पदाम्बुजः
८५. सहस्त्र मस्तकोपेतो
रसातल सुधाकरः
८६. क्षीरोदार्णव सम्भूतः
८७. कुण्डलैकावतंसकः
८८. रक्तोपालधरः
८९. शुभ्रः
९०. नारायण परायणः
९१. अपारमहिमानन्तः
९२. नृ दोर्षादर्शिनः सदा
९३. दयालुः
९४. दुर्गति त्राता
९५. कृतान्तो दुष्ट देहिनाम
९६. मंजु दाशरथिर्वीरो
९७. लक्ष्मणः
९८. सर्ववल्लभः
९९. सदोज्ज्वलो रसानंदी
१००. वृन्दावन रसप्रदः
१०१. पुर्णप्रेम सुधासिन्धुः
१०२. नित्य लिला विशारदः
१०३. कोटीन्दु वैभव
१०४. श्री मान
१०५. जगदाल्हादकारकः
१०६. गोपाल
१०७. सर्वपालक
१०८. सर्व गोपावतंसकः
नित्यानन्द नित्यपाठ फलश्रुति
नित्यानन्द स्वरूपस्य
नाम्नाम् अष्टोत्तरम् शतम ।
यः पठेद् प्रातर् उत्थाय
नित्यानन्दस्य महात्मनः ।
श्रद्धया परयोपेतः
स्तोत्रं सर्वाघ-नाशनम् ।
प्रेम-भक्तिर् हरौ तस्य
जायते नात्र संशयः ।।१।।
माघे मासी शिते पक्शे
त्रयोदास्यम तिथौ सदा ।
उपोषणम् पूजनम् च
श्री नित्यानन्द वासरे ।।
श्रद्धया परया भक्त्या
महा-स्तोत्रं जपन् पुरः
यद् यत् प्रकुरुते कामं
तत् तद् एवाचिराल् लभेत् ।।२।।
असाध्य-रोग-युक्तो ‘पि
मुच्यते रोग-सङ्कटात्
सर्वापराध-युक्तो ’पि
सो ‘पराधात् प्रमुच्यते ।।३।।
अपुत्रो वैष्णवं पुत्रं
लभते नात्र संशयः ।
अन्ते नित्यानन्द-देवस्य
स्मृतिर् भवति शाश्वती ।।४।।
इदं नित्यानन्द परमं नामं
आमयघ्नम सूचापहम ।
यह पठेत प्रायतो भक्त्या
नित्यानन्दे लभते रतिम ।।५।।
नामात्मको नित्यानन्दो
यस्य चेतसि वर्तते ।
स सर्वं विषयम त्यक्त्वा
भावानन्दो भवेत् ध्रुवम ।।६।।
सर्व वेद पाठ से मिले जो फल ।
विष्णु-सहस्र-नाम से मिले वोही फल ॥७॥
वो फल मिले केवल एक रामनाम से ।
तीन रामनाम फल एक कृष्णनाम से ॥८॥
राधा-कृष्ण जो भजे एक सौ जनम ।
उसे मिले गौरनाम का गुप्त धन ॥९॥
अन्त में कई जन्मों की गौर उपासना ।
देती है नित्यानन्द नाम लेने की वासना ॥१०॥
नित्यानन्द नामों का जो करे नित्य पाठ ।
उसकी अतिशीघ्र खुले कर्म-बंध-गाँठ ॥११॥
भुक्ति सिद्धि मुक्ति उसकी नम्रदासी बने ।
सकल प्रेमशक्ति उसके देह में प्रवेशे ॥१२॥
सब इच्छा पूर्ण होकर सब संकट मिटे ।
सब रोग दूर जाय सब सुख मिले ॥१३॥
एक बार पढ़े इन्हें या पढ़े बार बार ।
मनोवाञ्छित फल पाय राधा-कृष्ण प्यार।।१४।।
जनम जनम के पाप सब नाश पाय ।
चौरासी-लाख देह वो कभी ना पाय ॥१५॥
अन्तमें मिले गोलोक में सुखी जीवन ।
शाश्वत सनातन परमानन्द धाम ॥१६॥
नित्यानन्द नामों को जो सबको बाँटें ।
वो तो निश्चित करे राधा से बातें ॥१७॥