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में नित्यानन्द का होकर गौरांग का भजन करूँगा।
अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर,
एई बड़ा भरोसा चित्ते धरी निरंतर।

चैतन्य भगवत आदि खंड 17वा अध्याय और 153वा श्लोक है, वृन्दावन दास ठाकुर का, इसमें वो अपना भाव बता रहें हैं। वो कैसे नित्यानन्द गौरांग की भक्ति करते हैं, वो कहते हैं कि मेरे प्रभु नित्यानन्द हैं। इष्ट देव वन्दौ मोरा नित्यानन्द राय, मेरे इष्ट देव तो नित्यानन्द ही हैं, मेरे प्रभु की जब मैं सेवा करता हूँ, मेरे प्रभु की जब मैं भक्ति करता हूँ, मेरे प्रभु की जब मैं आरती करता हूँ, मेरे प्रभु की जब मैं कीर्तन करता हूँ, नित्यानन्द प्रभु का, तब मुझे स्मरण होता है कि मेरे प्रभु, नित्यानन्द प्रभु उनके प्रभु का स्मरण कर रहे हैं, गौर सुन्दर का, गौरांग महाप्रभु का। तो गौरांग महाप्रभु जो हैं वो मेरे प्रभु के प्रभु, मेरे direct प्रभु नहीं हैं वो, क्योंकि मैं उतना योग्य नहीं हूं, मैं नित्यानन्द प्रभु को अपना प्रभु मानकर ही मैं गौरांग महाप्रभु को अपना प्रभु का प्रभु मानता हूं।
अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर, ये बहुत सुंदर है, ये जो गोपियाँ कहती हैं न व्रज में ये वही है, आमि राधार दासी, राधार दासनुदासी। उसी भाव से कृष्ण का भजन करुँगी मैं जो गोपोया कहती हैं राधा के अनुगत्य में। वही भाव है ये वृन्दावन दास ठाकुर का आप इसको कुछ हल्का मत मानिये। चैतन्य भगवत से छलांग लगाकर सीधा चैतन्य चारित्रमृत में मत जाइये। अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर, एई बड़ा भरोसा चित्ते धरी निरंतर।
क्या गौरांग महाप्रभु अप्रस्सन होते हैं क्या की वृन्दावन दास ठाकुर उनको अपना प्रभु का प्रभु मानते हैं और नित्यानन्द को प्रभु, नहीं, गौरांग महाप्रभु बहुत प्रस्सन होते हैं, कहते हैं जय हो जय हो, जो मेरे भक्त की भक्ति करेगा वो मेरा उत्तम भक्त, मेरा परम भक्त है। इसलिए वृन्दावन दास ठाकुर कहते हैं, एई बड़ा भरोसा चित्ते धरी निरंतर, बड़ा भरोसा है, मैं यही भरोसा रखूँगा मेरे चित्त मे, मेरे को कोई शंका नहीं है, संसार के लोग कहेंगे के तुमने गौरांग महाप्रभु को छोड़ दिया, तुमने राधा कृष्ण को छोड़ दिया। वृन्दावन दास ठाकुर कहते हैं, नहीं, नहीं, नहीं, मुझे दृढ भरोसा है कि मेरे नित्यानन्द प्रभु सब कुछ देते हैं, सब देते हैं, गौर भक्ति, राधा कृष्ण भक्ति, हरिनाम शुद्ध हरिनाम देते हैं, सब कुछ देते हैं। तो मैं नित्यानन्द प्रभु का भजन, स्मरण, कीर्तन करूँगा, उनकी लीला का श्रवण करूँगा।
अमार प्रभुरा प्रभु, कितना सुन्दर है भाव कितना सुन्दर भाव, अलौकिक भाव है। गौरांग महाप्रभु को प्रस्सन करने का ये एक ही तरीका है पुरे संसार में पूरी सृष्टि में, जैसे कृष्ण को प्रस्सन करने का एक ही तरीका है, राधा भजन बिना अकारण गेला।
अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर, मेरा जो सम्बन्ध है गौर सुन्दर के साथ वो मेरा सम्बन्ध नित्यानन्द प्रभु के द्वारा है। ये बहुत ही, बहुत ही दिव्य सम्बन्ध जो गोपी पदकमलयो दास दासानुदास जो हमें गौर सुन्दर ने ही बताया है कि गोपियों के दासो के दासो के दास बनो। वैसे ही नित्यानन्द गौर लीला में बीबी हमे नित्यानन्द दास बनना हैं। एक बार बले जे आमि नित्यानन्द दास अवश्य ही देखिबे से जन गौरंगेरा प्रकाश। जरूर जरूर मिलेगा उसे गौरांग का दर्शन अगर वो व्यक्ति नित्यानन्द दास बनता है तो।
अमार प्रभुरा प्रभु, गौरांग महाप्रभु को वो सीधे नहीं जाता, वो नित्यानन्द प्रभु को अपना सर्वस्व देता है, उनको प्रभु मानता है, अपना immediate प्रभु मानता है अपने गुरु वर्ग की कृपा से। सारी गुरु परमपरा हमे नित्यानन्द प्रभु के चरणों में ले जाना चाहती है। नित्यानन्द प्रभु का स्थान replace करना नई चाहती है।
अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर, एई बड़ा भरोसा चित्ते धरी निरंतर। निरंतर, निरंतर शब्द बहुत जरुरी है कि मुझे गौरांग महाप्रभु मिलने के बाद भी मैं नित्यानन्द प्रभु का पक्ष नही छोडूंगा। जैसे गोपियों को, मंजरियों के कृष्ण सामने होते हैं और मांगते हैं उनका संग, पर मंजरियां बोलती हैं कि हम राधा की सेवा नही छोड़ सकती, तुमको हमारा संग चाहिए तो तुम राधा को पहले प्रस्सन करो कृष्ण। ये बहुत ही सुन्दर भाव है, वही वृन्दावन दास ठाकुर यहाँ कह रहे हैं कि अमार प्रभुरा प्रभु श्री गौरांग सुन्दर, एई बड़ा भरोसा चित्ते धरी निरंतर, मुझे पूरा भरोसा है की ये जो मेरा भाव है ये गौरांग महाप्रभु को प्रस्सन करता है, ये राधा कृष्ण को भी प्रसन्न करेगा, ये ही भाव से वो मुझे मिलेंगे, ओर किसी भाव से वो मिल नहीं सकते, उनके direct भक्त बनने की कोशिश करेंगे तो वो कभी नहीं मिलेंगे। वो कहेंगे कि हे जीव तुम अहंकारी हो तुम मेरे भक्त के भक्त क्यों नई बनते पहले, तुम नित्यानन्द के दास क्यों नही बनते पहले।
अति अल्प भाग्य नाही हय नित्यानन्द दास, चैतन्य भागवत में कहा है कि थोड़ा भाग्य होने से कोई नित्यानन्द दास नही बनता है। जैसे कनिष्ठ अधिकारी है वो कभी भक्तो की भक्ति नही करता वो सीधा भगवान् से connection लगाना चाहता है, उसमे और मध्यम अधिकारी में अंतर है। मध्यम अधिकारी सार समझ लेता है और वो भक्त की भक्ति करता है, भगवान् को पाने के लिए। तो नित्यानन्द गौर लीला में परम भक्त कौन हैं, नित्यानन्द प्रभु, सबसे अग्र भक्त भगवान के, दोनों अवतारी हैं बल्कि। राधा कृष्ण लीला में राधा रानी हैं, पर राधा की सेवा मिलने के लिए नित्यानन्द की सेवा जरुरी है, क्यूंकि नित्यानन्द की सेवा से गौरांग मिलेंगे और गौरांग की सेवा से राधा कृष्ण। तो नित्यानन्द के चरणों को पकड़ के रखो। वृन्दावन दास ठाकुर के इस श्लोक को यदि आँख पर पट्टी बांध कर भी अगर आप जीवन में उतारो तो भी आपको नित्यानन्द, गौरांग और राधा कृष्ण मिल ही जायेंगे, इस पर आप अंध श्रद्धा करो, की भई मैं नित्यानन्द को सब कुछ मान लू, अपना प्रभु मान लू और फिर मैं गौर सुन्दर को प्रभु का प्रभु मानु और फिर राधा कृष्ण को प्रभु का प्रभु का प्रभु मानूँगा। ये भाव जिसको होगा, वो समझ लेगा, सब कुछ मिल जायेगा उसको।
ट्रैन्स्क्रिप्शन सेवा प्राण नित्यानन्द दास के द्वारा