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सर्व भाव से मेरे स्वामी नित्यानन्द हैं और उनका होकर में गौरांग की उपासना करूँगा।

सर्व भावे स्वामी जेन
हय नित्यानन्द
तांर हैया भजि आमि
प्रभु गौरचंद्र
(चैतन्य भागवत आदि खंड नवम अध्याय श्लोक संख्या 231)
श्रील वृन्दावन दस ठाकुर वेद व्यास के अवतार हैं, वो कह रहे हैं कि, हमे गूढ़ तत्त्व समझा रहे हैं गौर भक्ति का। जैसे राधारानी के जो पाल्य दासियाँ हैं वो राधारानी की सेवा ही अपने जीवन का सर्वस्व मानती हैं। वो अपना सब कुछ राधा रानी के चरणों में समर्पित करती हैं, उनको कृष्ण की सेवा बिना राधारानी के नहीं चाहिये। वो राधारानी की सेवा में ही कृष्ण की सेवा मानती हैं और वो राधा की सेवा से ही कृष्ण को पाना चाहती हैं। तो क्या कोई यह कह सकता है कि इन्होंने कृष्ण को छोड़ दिया, कृष्ण की भक्ति नहीं करती हैं। कृष्ण ने स्वयं कहा है कि मेरे भक्त के भक्त मेरे उत्तम भक्त हैं, मेरे परम भक्त हैं, उनका मैं गुलाम हो जाता हूं। मेरे खुद के भक्तों को मैं दू या न दू इसका कोई प्रमाण नहीं है। ये ही भाव वृन्दावन दास ठाकुर नित्यानन्द गौर लीला में बता रहे हैं हमे, बड़ा ही गुह्य श्लोक है, इस श्लोक में सारा सार बता दिया है उन्होंने।
सर्व भावे स्वामी जेनो हेनो नित्यानन्द, सर्व भावे, सब रूप से सब प्रकार से मेरे स्वामी नित्यानंद हैं। मैं नित्यानन्द का होऊंगा, मैं नित्यानन्द की सेवा करूँगा, एकनिष्ठा से। व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन, एक दृढ विश्वास से, मैं नित्यानन्द की भक्ति करूँगा, मैं उनकी सेवा करूँगा, मैं उनको चंवर डालूंगा, मैं उनके चरण पकडूँगा, प्रक्चल्लन करूँगा, उनकी इच्छा को जीवन में उतारूंगा। इस प्रकार से मैं नित्यानन्द को अपने जीवन का सर्वस्व मानकर ही मैं नित्यानन्द का हो जाऊंगा।
सर्व भावे स्वामी जेनो हेनो नित्यानन्द
तांर हैय, मैं उनका हो जाऊंगा। ये बहुत जरुरी है नित्यानन्द का जो नहीं होता उसको कुछ नहीं मिलता। उसको गौर भी नहीं मिलते हैं, राधा कृष्ण भी नहीं, कुछ नहीं, अपराध भी कभी ख़त्म नहीं होते। तांर हैया भजि आमि उनका होना बहुत जरुरी है। वही वृन्दावन दास ठाकुर कह रहे हैं, मैं गौरांग के पास नहीं जाऊंगा सीधे मैं पहले नित्यानन्द का हो जाऊंगा, पूर्ण रूप से हो जाऊंगा। सर्व भावे स्वामी जेनो हेनो नित्यानन्द, नित्यानन्द के चरण दृढ़ता से पकड़ लूंगा, मैं पूर्ण भाव से उनका हो जाऊंगा। ये उनकी निष्ठा है, संकल्प है, वृन्दावन दास ठाकुर का।
तांर हैया और सर्व भावे ये दोनों में बहुत सुंदर समन्वय है, की सर्व भावे, अगर सर्व भाव से मैं नित्यानन्द की आराधना कर रहा हूं, नित्यानन्द के चरणों को अपना सर्वस्व माना है, उसका मतलब ये नहीं की मैंने गौर राधा कृष्ण को छोड़ दिया है, नहीं छोड़ा, बल्कि ये तो रास्ता है, हेनो नित्यानन्द विने भाई राधा कृष्ण पाईते नाही, नहीं मिल सकते राधा कृष्ण।
तोमार कृपा बिना गौर नहीं पाए, सत जन्म भजे यदि गौरांग हियाये। नहीं मिल सकते गौरांग भी नहीं और राधा कृष्ण भी नहीं। तो नित्यानन्द को सर्व भाव से भक्ति करने से, सर्व भाव से समर्पण करने से, ये एकनिष्ट भाव जो एक भक्त का है, वृन्दावन दास ठाकुर इसके मूर्तिमान स्वरूप हैं। हमे ये नहीं सोचना चाहिए की वृन्दावन दास ठाकुर ने गौरांग को छोड़ दिया, नहीं, मेरे भक्त के भक्त मेरे परम भक्त।
तो तांर हैया, जब हम नित्यानन्द को सर्वस्व अर्पण करेंगे तो नित्यानन्द प्रभु हमारी जवाबदारी लेंगे।
सर्व भावे, सर्व भाव से हम नित्यानन्द की शरण में जाएं, ऐसा नहीं की हमे भाव नहीं है गौरांग के लिए और राधा कृष्ण के लिए, नहीं, पर उस भाव के हम योग्य नहीं इसलिए नित्यानन्द में हम अपना भाव लगाते हैं। नित्यानन्द में हम पूरा अपना भाव लगाएं, सर्व भावे स्वामी जेनो हेनो नित्यानन्द।
नित्यानन्द को ये स्वीकार है, वरना वृन्दावन दास ठाकुर कहते की क्यों की सर्व भाव से नित्यानन्द की आराधना करूँगा और नित्यानन्द प्रभु नाराज नहीं हैं वो तो प्रसन्न है, क्यों, क्योंकि तांर हैया, मैं उनका हो जाऊंगा, मैं सर्व भाव से, सर्व रूप से उनकी भक्ति करूँगा, एकनिष्ट भाव से। तो मैं उनका हो जाऊंगा, वो मुझे स्वीकार करेंगे नित्यानन्द प्रभु, मुझे अपने परिवार के रूप में मानेंगे, मुझे अंगीकार कर लेंगे, मुझे आलिंगन करेंगे और उनका होकर मैं उनके साथ उनकी आज्ञा से, तांर हैया भजि आमि प्रभु गौरचंद्र मैं गौरचंद्र को भजन करूँगा जब वो आज्ञा दे देंगे, वो मुझे लायक बनाएंगे, वो मुझे योग्य बनाएंगे। वो मुझे भेज भेजेंगे जैसे रघुनाथ दास गोस्वामी को भेजा, कृष्णदास कविराज गोस्वामी को भेजा, जीव गोस्वामी को भेजा, रूप सनातन को भेजा। किसने भेजा राधा कृष्ण के पास वृन्दावन में? नित्यानन्द ने भेजा गौरांग के पास सब गोस्वामियों को, सब मंजरियों को, तो मैं उनका हो जाऊंगा क्योंकि उनका हो जाऊंगा तो ही मैं गौर का भजन कर सकता हूँ। तांर हैया – उनका होकर मुझे सब दृश्य दिखेंगे, मुझे गौरांग की लीलाये अगोचर नहीं रहेंगी क्यूंकि उनकी कृपा से, नित्यानन्द की कृपा से जैसे जो राधारानी की सेवा कर ती हैं न गोपिया तो कृष्ण स्वयं उनके पास दौड़े आते हैं, उनको कृष्ण के पास नहीं जाना पड़ता, वैसे ही जो नित्यानन्द की भक्ति करते हैं वो तो भगवान को जीत लेते हैं, खरीद लेते हैं, गौरांग महाप्रभु को, राधा कृष्ण को। तांर हैया, ये बहुत जरुरी है कि मैं नित्यानन्द का हो जाऊं, नही होंगे तो हम चैतन्य चारित्रमृत को भी नहीं समझ सकते, चैतन्य भागवत को भी नहीं समझ सकते, श्रीमद भागवत को भी नहीं समझ सकते। जब तक हम नित्यानन्द प्रभु के नहीं हो जाते, तो वो सम्बन्ध नहीं मिलता, सेइ सम्बन्ध नाही जार वृथा जन्म गेलो तार। वो सम्बन्ध नहीं मिलेगा तब तक हमे कुछ नहीं मिलेगा, कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए हमें एकनिष्ठा से नित्यानन्द के धरो चरण दुःखानी, उनके हो जाओ बस सब कुछ मिल जायेगा आपको।
ट्रैन्स्क्रिप्शन सेवा प्राण नित्यानन्द दास के द्वारा